मेरे चित्र मेरे शब्द ..........
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कोमल या कठोर
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हाँ धरा हूँ में
जितनी शख्त नजर आती हूँ
उतनी ही धनि रंग में
लहराती हूँ खिलखिला के
जब सूरज की किरने
बरसती हैं मुझ पे
निर्मल सिर्फ निर्मल करती हैं
भीतर के विचारो को
सीच कर चटका देती हैं
मेरे मन के अवसादों
पे पड़ जाती हैं दरारे
अंकुरित हो उठती हैं
मन की जड़े.....
......................सविता अगरवाल........
.....painting is my own copyrite .........
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कोमल या कठोर
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हाँ धरा हूँ में
जितनी शख्त नजर आती हूँ
उतनी ही धनि रंग में
लहराती हूँ खिलखिला के
जब सूरज की किरने
बरसती हैं मुझ पे
निर्मल सिर्फ निर्मल करती हैं
भीतर के विचारो को
सीच कर चटका देती हैं
मेरे मन के अवसादों
पे पड़ जाती हैं दरारे
अंकुरित हो उठती हैं
मन की जड़े.....
......................सविता अगरवाल........
.....painting is my own copyrite .........
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