Saturday, January 30, 2016

तस्वुर ऐ तस्वीर और
बहते रंगो का जलजला
हर्फ हर्फ था रो पङा 
जब ख्याल कोई जला.......
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न एहतराम वादो का रहा
न एतबार यादो का रहा
शिकायत न रही किसी से
न ही खुद से रहा मुझे गिला.......
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हर्फ हर्फ रो था पङा
जब ख्याल कोई जला.....
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उठ था  जब यकीं का धुआं 
तस्सवुर इबादत करता रहा 
फिर रूबरू हम तुझ से हुए 
ख़ाक में वो तस्सवुर मिला .......
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हर्फ हर्फ रो था पङा
जब ख्याल कोई जला...
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.......................शब्द सरिता-सविता  
ऐसा  नही की मुझकों तुझसे जरा भी प्यार नहीं
पर जिंदगी सिर्फ कोई जीत और हार नहीं 
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हर चीज को हमने बिकते हुए बाजार में देखा
पर रिश्तें होते  हैं अनमोल कोई व्यापार नहीं
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माना कि खुदगर्जी के हाथों में तेज़ तलवार हैं
पर काटे प्रेम को इसमें अभी वों आयी धार नहीं
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मिली है हमे कुछ साँसे कर गुज़रने के लियें
पर गुजार दूँ शिकवों में  इतने भी बेजार नहीं
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एक रोज मौत हौले से दस्तक दे  देगी हमको
पर कह कहाँ  पाएंगे उसको हम अभी तैयार नहीं
......................................शब्द सरिता -सविता 








घर के आँगन में
बूढ़े दरख्त की
मजबूत शाखाओ पर
बचपन का झुला
सबको याद आया

एक छोटे से
शीर्षक ने बचपन
के हर खेल को
बारी बारी  याद कराया

सुख में दुःख में
जो था इस आँगन ने
बखूबी साथ निभाया

छन से एक पुरवाई
मुझको भी कही
दूर खीच लायी
कोमल अहसासों
की बगियाँ महकायी

पर मन ने जबसे
तस्वीरो से बात की हैं
आज आचानक आँगन ने
मुझसे एक नयी
मुलाकात की हैं

एक सूनापन उसकी
आँखों में नजर आया हैं
अपनों के बीच जैसे
वो तो  कोई पराया हैं
तभी तो घर की
दहलीज के बाहर
तक ही रहा हैं
उसके वजूद का  साया हैं ...........
...........................शब्द सरिता -सविता
जिस रोज 
शब्द मेरे 
सूख जाए 

तब सम्भव
हो कि
उनमे मेरी
खुश्बू न आए 
तो फिर सीच 
देना इन्हें 
अपने साथ के
अहसास से 
या फिर कर देना
इन्हें मृत घोषित 
और दफना देना
किसी पुरानी किताब में........
............... शब्द सरिता - सविता

Friday, January 29, 2016

सहजता हर रूप में स्वीकार्य हैं ......मेरी रचना का आधार ..
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पर्ते सच की
जब खुलने
लगती हैं
सुन्दर सी
तस्वीरे भी
तब धुलने
लगती हैं
आवरण तो


हर चीज पर
नजर आता हैं
आत्मा पर
शरीर का
स्वार्थो पर
विश्वास का
निराशा पर
आशा का
कुरचोगे जो
तो छिल जाओगे .....
सहज ही खोलने दो
सत्य को पिघलने दो ..........


............... शब्द सरिता - सविता

आ चले
...... चाँद के पहलू में 
बैठ कर 
...... चाँद से 
चाँद की बात करते हैं 

...... छुपा रखा है
जिन ख्वाबों को
....... उसने अपनी खामोशी में
उन ख्वाबों से
......... चल करके मुलाकात करते हैं.....
............... शब्द सरिता - सविता

आ भोर को चिड़िया आँगन में चहकती तो होगी
हवायें आँगन में तुम्हारे कुछ देर ठहरती तो होगी
मैं छोड़ आयी थी जिस शाख पर डला एक झुला 
शाख कभी-कभी वो याद में मेरी लहरती तो होगी
सिवाय यादों के मै लायी नही साथ में कुछ भी
बात शायद तुझको ये अब भी अखरती तो होगी
हाँ! नही है ये मुमकिन कि सबको सब मिल जाये
लकीरें हाथों की इन ख्वाहिशों से सिहरती तो होगी
रह गयी थी जो मुलाकातें अधूरी हमारी तुम्हारी
ऐ! वक्त ख्वाब में जिन्दगी तुझमे सवंरती तो होगी
............................ शब्द सरिता - सविता

Thursday, January 28, 2016

ऐ!सितारों
गूंज कर चटको
और फिर बिखर जाओ
इस खामोश रात मे
खातिर चाँद के
कुछ तो शोर मचाओ
मचाओ शोर इतना
कि बिजलियाँ भी
सिहर जाये
नीद के सिरहाने
रख छोङी
गठरी ख्वाबो की
बिखर जाये
हर टूटे ख्वाब के
एक एक जर्रे मे तुम
आफताब नया पाओ
गूंज कर चटको
और फिर बिखर जाओ.....
संगीत......
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पिरो कर 
लफ्जो को 
जब कोई साज
आवाज करता है 
तो नाच उठती है
गजल कोई
और गीत कोई
परवाज भरता है......
..