Friday, January 29, 2016

आ भोर को चिड़िया आँगन में चहकती तो होगी
हवायें आँगन में तुम्हारे कुछ देर ठहरती तो होगी
मैं छोड़ आयी थी जिस शाख पर डला एक झुला 
शाख कभी-कभी वो याद में मेरी लहरती तो होगी
सिवाय यादों के मै लायी नही साथ में कुछ भी
बात शायद तुझको ये अब भी अखरती तो होगी
हाँ! नही है ये मुमकिन कि सबको सब मिल जाये
लकीरें हाथों की इन ख्वाहिशों से सिहरती तो होगी
रह गयी थी जो मुलाकातें अधूरी हमारी तुम्हारी
ऐ! वक्त ख्वाब में जिन्दगी तुझमे सवंरती तो होगी
............................ शब्द सरिता - सविता

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