Friday, January 29, 2016

सहजता हर रूप में स्वीकार्य हैं ......मेरी रचना का आधार ..
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पर्ते सच की
जब खुलने
लगती हैं
सुन्दर सी
तस्वीरे भी
तब धुलने
लगती हैं
आवरण तो


हर चीज पर
नजर आता हैं
आत्मा पर
शरीर का
स्वार्थो पर
विश्वास का
निराशा पर
आशा का
कुरचोगे जो
तो छिल जाओगे .....
सहज ही खोलने दो
सत्य को पिघलने दो ..........


............... शब्द सरिता - सविता

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