Saturday, January 30, 2016

घर के आँगन में
बूढ़े दरख्त की
मजबूत शाखाओ पर
बचपन का झुला
सबको याद आया

एक छोटे से
शीर्षक ने बचपन
के हर खेल को
बारी बारी  याद कराया

सुख में दुःख में
जो था इस आँगन ने
बखूबी साथ निभाया

छन से एक पुरवाई
मुझको भी कही
दूर खीच लायी
कोमल अहसासों
की बगियाँ महकायी

पर मन ने जबसे
तस्वीरो से बात की हैं
आज आचानक आँगन ने
मुझसे एक नयी
मुलाकात की हैं

एक सूनापन उसकी
आँखों में नजर आया हैं
अपनों के बीच जैसे
वो तो  कोई पराया हैं
तभी तो घर की
दहलीज के बाहर
तक ही रहा हैं
उसके वजूद का  साया हैं ...........
...........................शब्द सरिता -सविता

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