घर के आँगन में
बूढ़े दरख्त की
मजबूत शाखाओ पर
बचपन का झुला
सबको याद आया
एक छोटे से
शीर्षक ने बचपन
के हर खेल को
बारी बारी याद कराया
सुख में दुःख में
जो था इस आँगन ने
बखूबी साथ निभाया
छन से एक पुरवाई
मुझको भी कही
दूर खीच लायी
कोमल अहसासों
की बगियाँ महकायी
पर मन ने जबसे
तस्वीरो से बात की हैं
आज आचानक आँगन ने
मुझसे एक नयी
मुलाकात की हैं
एक सूनापन उसकी
आँखों में नजर आया हैं
अपनों के बीच जैसे
वो तो कोई पराया हैं
तभी तो घर की
दहलीज के बाहर
तक ही रहा हैं
उसके वजूद का साया हैं ...........
...........................शब्द सरिता -सविता
बूढ़े दरख्त की
मजबूत शाखाओ पर
बचपन का झुला
सबको याद आया
एक छोटे से
शीर्षक ने बचपन
के हर खेल को
बारी बारी याद कराया
सुख में दुःख में
जो था इस आँगन ने
बखूबी साथ निभाया
छन से एक पुरवाई
मुझको भी कही
दूर खीच लायी
कोमल अहसासों
की बगियाँ महकायी
पर मन ने जबसे
तस्वीरो से बात की हैं
आज आचानक आँगन ने
मुझसे एक नयी
मुलाकात की हैं
एक सूनापन उसकी
आँखों में नजर आया हैं
अपनों के बीच जैसे
वो तो कोई पराया हैं
तभी तो घर की
दहलीज के बाहर
तक ही रहा हैं
उसके वजूद का साया हैं ...........
...........................शब्द सरिता -सविता
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