Monday, February 1, 2016

सोचती हूँ कभी कभी
जिस पेड़ की 
छांव मे पाकर 
विश्वास की खाद
अंकुरित हो गयी थी
स्नेह की वृक्ष लता
बिना सोचे बिना समझे
कि नही होता है
हर पेड़ बरगद सा
धुन मे अपनी
चली जा रही थी
सजती संवरती
कोमल कलियों
से निखरती
सहसा हुआ
एक व्रजपात
मुस्कुराता पेड़
नजर आया
अचानक हताश
उसके स्नेह की
कोमल लताओ पर
वो प्रेम पुष्प
तलाश रहा था
मानो जड़ो को
उसकी कोई खोद़
कर उखाड़ रहा था
अब बस पेड़ खड़ा है
विश्वास बिखरा पड़ा है 

और पड़ी है कुछ
मृत लताये
अनगिनत सवाल
खुली आँखो मे
नजर आये
पुछ रही है
सबसे कबसे
कोई तो ये बताये
इस जगंल मे
कोई रिश्ता कैसे निभाये .....
.......................शब्द सरिता-सविता  

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