सोचती हूँ कभी कभी
जिस पेड़ की
छांव मे पाकर
विश्वास की खाद
अंकुरित हो गयी थी
स्नेह की वृक्ष लता
बिना सोचे बिना समझे
कि नही होता है
हर पेड़ बरगद सा
धुन मे अपनी
चली जा रही थी
सजती संवरती
कोमल कलियों
से निखरती
सहसा हुआ
एक व्रजपात
मुस्कुराता पेड़
नजर आया
अचानक हताश
उसके स्नेह की
कोमल लताओ पर
वो प्रेम पुष्प
तलाश रहा था
मानो जड़ो को
उसकी कोई खोद़
कर उखाड़ रहा था
अब बस पेड़ खड़ा है
विश्वास बिखरा पड़ा है
और पड़ी है कुछ
मृत लताये
अनगिनत सवाल
खुली आँखो मे
नजर आये
पुछ रही है
सबसे कबसे
कोई तो ये बताये
इस जगंल मे
कोई रिश्ता कैसे निभाये .....
जिस पेड़ की
छांव मे पाकर
विश्वास की खाद
अंकुरित हो गयी थी
स्नेह की वृक्ष लता
बिना सोचे बिना समझे
कि नही होता है
हर पेड़ बरगद सा
धुन मे अपनी
चली जा रही थी
सजती संवरती
कोमल कलियों
से निखरती
सहसा हुआ
एक व्रजपात
मुस्कुराता पेड़
नजर आया
अचानक हताश
उसके स्नेह की
कोमल लताओ पर
वो प्रेम पुष्प
तलाश रहा था
मानो जड़ो को
उसकी कोई खोद़
कर उखाड़ रहा था
अब बस पेड़ खड़ा है
विश्वास बिखरा पड़ा है
और पड़ी है कुछ
मृत लताये
अनगिनत सवाल
खुली आँखो मे
नजर आये
पुछ रही है
सबसे कबसे
कोई तो ये बताये
इस जगंल मे
कोई रिश्ता कैसे निभाये .....
.......................शब्द सरिता-सविता
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