वक्त की लहरों में
जाने क्या-क्या
बहता चला गया
सिलापन किनारों का
सब दास्तां कह गया
समेट ली सागर ने
सब खामोशी
तन्हाई और
विरानियाँ
छोड़ दी किनारों पर
सीप मोती और
सुनहरे पत्थरों
की निशानियाँ
सहेज लेना तुम इन्हें
मेंज की दराजों मे
सोंधी सी खुशबूँ
अश्कों की बरसात
सुनेहरी सीपियों
में कैद
कही-अनकही
हर बात
पूरा एक समुद्र है
अब तुम्हारे हाथ
सौदें तन्हाई के
आखिर कर ही
लेते है जज्बात .....
...........................शब्द सरिता -सविता
जाने क्या-क्या
बहता चला गया
सिलापन किनारों का
सब दास्तां कह गया
समेट ली सागर ने
सब खामोशी
तन्हाई और
विरानियाँ
छोड़ दी किनारों पर
सीप मोती और
सुनहरे पत्थरों
की निशानियाँ
सहेज लेना तुम इन्हें
मेंज की दराजों मे
सोंधी सी खुशबूँ
अश्कों की बरसात
सुनेहरी सीपियों
में कैद
कही-अनकही
हर बात
पूरा एक समुद्र है
अब तुम्हारे हाथ
सौदें तन्हाई के
आखिर कर ही
लेते है जज्बात .....
...........................शब्द सरिता -सविता
No comments:
Post a Comment