तुम रंग और
रेखाओ के दरमियां
ढूढंते हो आकृतियां
और उन आकृतियों मे
विस्मृत कर देते हो
पृथक पृथक वजूद
रंगऔर रेखाओ का
तभी तो नजर आती है
तुम्हे तस्वीरे बिल्कुल सपाट
मानिद दिवार सी
और कह देते है
दिवारे बोलती कहां है
पर नही है तुम्हे पता
कि दिवारे सुन तो लेती है ....
...................और टटोलती है कान तुम्हारे .....
...........शब्द सरिता-सविता
रेखाओ के दरमियां
ढूढंते हो आकृतियां
और उन आकृतियों मे
विस्मृत कर देते हो
पृथक पृथक वजूद
रंगऔर रेखाओ का
तभी तो नजर आती है
तुम्हे तस्वीरे बिल्कुल सपाट
मानिद दिवार सी
और कह देते है
दिवारे बोलती कहां है
पर नही है तुम्हे पता
कि दिवारे सुन तो लेती है ....
...................और टटोलती है कान तुम्हारे .....
...........शब्द सरिता-सविता
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