सोचती हूँ
कभी कभी मै
लम्हा वो
सवाल बन कर
उभरा ही क्यो
जो जवाब मे
ढल न पाया
न जाने वक्त ने
जिन्दगी को या
जिन्दगी ने था
वक्त को सताया
भीड बहुत थी आतुर
साथ चलने को
कदम कदम पर
पर थी जब धूप
ज्यादा तल्ख
सिर्फ मेरे साये ने ही
साथ मेरा निभाया ...
.......................शब्द सरिता-सविता
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