Thursday, February 11, 2016

कहानी छोटी सी..........
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******आवाज-लाठी की*******
******************************(छोटा सा प्रयास)
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हर कहानी कई किरदारो मे बटी हुयी होती है ।बस की इतना समझ लो सांसो की सरजमीं पर एक दुसरे से सटी हुयी होती है ।ये वक्त ही है जो दरमियां फासले बनाता चलता है ।तभी तो कोई अपना ही अपने दर्द की वजह बनता है।
जाने कैसे कैसे सवाल आज जवाब दर जवाब उसके मन मे चले आ रहे थे ,जिन्हे सुनेहरे अक्षरो मे सहेज लेना
चाहती थी अरूधती अपनी उस ङायरी मे जिसका हर पन्ना भीगा हुआ था पिछले कई सालो से।आँखे आज भी गीली थी लिखते वक्त धुधंला सा दिख रहा था पर वह जानती थी कि चश्मे का नम्बर नही बढा है वजह ये खुशी के आंसू है ।अनिकेत जो लौट आया है ,बहू और बच्चो के साथ ।फिर भी वो लाठी उठाये अनिकेत के कमरे की तरफ बढ चली उससे कहने की शायद उसके चश्मे का नम्बर बढ गया कल ले चले उसे दिखाने।वक्त की सरजमीं पर आज अरूधती की चाल और लाठी की आवाज मे बेबसी और खामोशी नही थी
गूंज थी उसके ममत्व के हक की ।
लाठी की पटकती आवाज आज तब्दील हो चुकी थी लाठी की खनकती आवाज मे।

..........शब्द सरिता-सविता

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