Thursday, February 25, 2016
तुम रंग और
रेखाओ के दरमियां
ढूढंते हो आकृतियां
और उन आकृतियों मे
विस्मृत कर देते हो
पृथक पृथक वजूद
रंगऔर रेखाओ का
तभी तो नजर आती है
तुम्हे तस्वीरे बिल्कुल सपाट
मानिद दिवार सी
और कह देते है
दिवारे बोलती कहां है
पर नही है तुम्हे पता
कि दिवारे सुन तो लेती है ....
...................और टटोलती है कान तुम्हारे .....
...........शब्द सरिता-सविता
रेखाओ के दरमियां
ढूढंते हो आकृतियां
और उन आकृतियों मे
विस्मृत कर देते हो
पृथक पृथक वजूद
रंगऔर रेखाओ का
तभी तो नजर आती है
तुम्हे तस्वीरे बिल्कुल सपाट
मानिद दिवार सी
और कह देते है
दिवारे बोलती कहां है
पर नही है तुम्हे पता
कि दिवारे सुन तो लेती है ....
...................और टटोलती है कान तुम्हारे .....
...........शब्द सरिता-सविता
लहरे स्मृतियों की
वक्त से, बटोर के लाती
मोती सुनहरी यादों के
और ख्वाहिशों के किनारों पर
नजर आते हैं जब लम्हे
कई सुनहरे बिखरे हुए
मै बस देख पाती हूँ
रेंत पर बिखरे अल्फाज़
जो बह गये है दूर कहीं
स्मृतियों की लहरों के साथ
तुम चुग लेना सुनेहरे मोती
मै साथ ले आऊंगी वही
सीली सी रेत अपने साथ......
............शब्द सरिता-सविता
वक्त से, बटोर के लाती
मोती सुनहरी यादों के
और ख्वाहिशों के किनारों पर
नजर आते हैं जब लम्हे
कई सुनहरे बिखरे हुए
मै बस देख पाती हूँ
रेंत पर बिखरे अल्फाज़
जो बह गये है दूर कहीं
स्मृतियों की लहरों के साथ
तुम चुग लेना सुनेहरे मोती
मै साथ ले आऊंगी वही
सीली सी रेत अपने साथ......
............शब्द सरिता-सविता
Tuesday, February 16, 2016
एक कहानी .........
*******************
*******खनक-चूड़ी की****
*****************
आज फिर अराधना कसमसा कर रह गयी जब रानी का फोन आया कि मेमसाब मै आज नही आऊँगी ।तीन चार रोज पहले भी जब वो छुट्टी के बाद आयी थी तो कहां अराधना ने उसे काम करने दिया था ।हाथ पर पट्टी देख जब रानी से सवाल किया तो बोली चूडी पहनते वक्त हाथ कट गया।बात सिर्फ तीन चार रोज पहले की नही थी ,ये सिलसिला तो कई महिनो से चल रहा था ।तकलीफ अराधना को बस इसी बात की थी। तभी डस्टिग करते वक्त अलमारी पर से गिर कर उसकी डायरी उसके सामने आ गयी।डायरी देख अचानक उसे याद आ गयी अपनी ही कही बात कि "काँच की चुडियाँ असानी से मुड़ती नही चाहे टूट भी जाये तभी तो आत्मविश्वाश की खनक से वो हरदम खनकती है। " सहसा ही अराधना ने पर्स उठाया और निकल पडी रानी के घर की तरफ ताकि रानी को भी उसकी चुडियो की खनक सुना सके।....
........सही भी तो है खनक चूड़ी की दिखायी कहाँ देती है ये तो बस सुनायी देती है।
............शब्द सरिता-सविता
*******************
*******खनक-चूड़ी की****
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आज फिर अराधना कसमसा कर रह गयी जब रानी का फोन आया कि मेमसाब मै आज नही आऊँगी ।तीन चार रोज पहले भी जब वो छुट्टी के बाद आयी थी तो कहां अराधना ने उसे काम करने दिया था ।हाथ पर पट्टी देख जब रानी से सवाल किया तो बोली चूडी पहनते वक्त हाथ कट गया।बात सिर्फ तीन चार रोज पहले की नही थी ,ये सिलसिला तो कई महिनो से चल रहा था ।तकलीफ अराधना को बस इसी बात की थी। तभी डस्टिग करते वक्त अलमारी पर से गिर कर उसकी डायरी उसके सामने आ गयी।डायरी देख अचानक उसे याद आ गयी अपनी ही कही बात कि "काँच की चुडियाँ असानी से मुड़ती नही चाहे टूट भी जाये तभी तो आत्मविश्वाश की खनक से वो हरदम खनकती है। " सहसा ही अराधना ने पर्स उठाया और निकल पडी रानी के घर की तरफ ताकि रानी को भी उसकी चुडियो की खनक सुना सके।....
........सही भी तो है खनक चूड़ी की दिखायी कहाँ देती है ये तो बस सुनायी देती है।
............शब्द सरिता-सविता
Thursday, February 11, 2016
कहानी छोटी सी..........
***********************
******आवाज-लाठी की*******
******************************(छोटा सा प्रयास)
............................
हर कहानी कई किरदारो मे बटी हुयी होती है ।बस की इतना समझ लो सांसो की सरजमीं पर एक दुसरे से सटी हुयी होती है ।ये वक्त ही है जो दरमियां फासले बनाता चलता है ।तभी तो कोई अपना ही अपने दर्द की वजह बनता है।
जाने कैसे कैसे सवाल आज जवाब दर जवाब उसके मन मे चले आ रहे थे ,जिन्हे सुनेहरे अक्षरो मे सहेज लेना
चाहती थी अरूधती अपनी उस ङायरी मे जिसका हर पन्ना भीगा हुआ था पिछले कई सालो से।आँखे आज भी गीली थी लिखते वक्त धुधंला सा दिख रहा था पर वह जानती थी कि चश्मे का नम्बर नही बढा है वजह ये खुशी के आंसू है ।अनिकेत जो लौट आया है ,बहू और बच्चो के साथ ।फिर भी वो लाठी उठाये अनिकेत के कमरे की तरफ बढ चली उससे कहने की शायद उसके चश्मे का नम्बर बढ गया कल ले चले उसे दिखाने।वक्त की सरजमीं पर आज अरूधती की चाल और लाठी की आवाज मे बेबसी और खामोशी नही थी
गूंज थी उसके ममत्व के हक की ।
लाठी की पटकती आवाज आज तब्दील हो चुकी थी लाठी की खनकती आवाज मे।
..........शब्द सरिता-सविता
***********************
******आवाज-लाठी की*******
******************************(छोटा सा प्रयास)
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हर कहानी कई किरदारो मे बटी हुयी होती है ।बस की इतना समझ लो सांसो की सरजमीं पर एक दुसरे से सटी हुयी होती है ।ये वक्त ही है जो दरमियां फासले बनाता चलता है ।तभी तो कोई अपना ही अपने दर्द की वजह बनता है।
जाने कैसे कैसे सवाल आज जवाब दर जवाब उसके मन मे चले आ रहे थे ,जिन्हे सुनेहरे अक्षरो मे सहेज लेना
चाहती थी अरूधती अपनी उस ङायरी मे जिसका हर पन्ना भीगा हुआ था पिछले कई सालो से।आँखे आज भी गीली थी लिखते वक्त धुधंला सा दिख रहा था पर वह जानती थी कि चश्मे का नम्बर नही बढा है वजह ये खुशी के आंसू है ।अनिकेत जो लौट आया है ,बहू और बच्चो के साथ ।फिर भी वो लाठी उठाये अनिकेत के कमरे की तरफ बढ चली उससे कहने की शायद उसके चश्मे का नम्बर बढ गया कल ले चले उसे दिखाने।वक्त की सरजमीं पर आज अरूधती की चाल और लाठी की आवाज मे बेबसी और खामोशी नही थी
गूंज थी उसके ममत्व के हक की ।
लाठी की पटकती आवाज आज तब्दील हो चुकी थी लाठी की खनकती आवाज मे।
..........शब्द सरिता-सविता
Monday, February 1, 2016
हाँ...ऐ!वक्त
दफन कर
चुकी हूँ मै
इस साथ के
अहसास को ....
माना कि राह मे
दूर तलक
निशां लहू के
नजर आयेगे
पर अब निकाल
चुकी हूँ मै
पैरो मे चुभती
फांस को .......
दफन कर
चुकी हूँ मै
इस साथ के
अहसास को ......
अब भले ही
धडकने ये
यादो की धोंकनी
पर झोक दे
मेरी हर सांस को......
दफन कर
चुकी हूँ मै
इस साथ के
अहसास को......
..........शब्द सरिता-सविता
दफन कर
चुकी हूँ मै
इस साथ के
अहसास को ....
माना कि राह मे
दूर तलक
निशां लहू के
नजर आयेगे
पर अब निकाल
चुकी हूँ मै
पैरो मे चुभती
फांस को .......
दफन कर
चुकी हूँ मै
इस साथ के
अहसास को ......
अब भले ही
धडकने ये
यादो की धोंकनी
पर झोक दे
मेरी हर सांस को......
दफन कर
चुकी हूँ मै
इस साथ के
अहसास को......
..........शब्द सरिता-सविता
वक्त की लहरों में
जाने क्या-क्या
बहता चला गया
सिलापन किनारों का
सब दास्तां कह गया
समेट ली सागर ने
सब खामोशी
तन्हाई और
विरानियाँ
छोड़ दी किनारों पर
सीप मोती और
सुनहरे पत्थरों
की निशानियाँ
सहेज लेना तुम इन्हें
मेंज की दराजों मे
सोंधी सी खुशबूँ
अश्कों की बरसात
सुनेहरी सीपियों
में कैद
कही-अनकही
हर बात
पूरा एक समुद्र है
अब तुम्हारे हाथ
सौदें तन्हाई के
आखिर कर ही
लेते है जज्बात .....
जाने क्या-क्या
बहता चला गया
सिलापन किनारों का
सब दास्तां कह गया
समेट ली सागर ने
सब खामोशी
तन्हाई और
विरानियाँ
छोड़ दी किनारों पर
सीप मोती और
सुनहरे पत्थरों
की निशानियाँ
सहेज लेना तुम इन्हें
मेंज की दराजों मे
सोंधी सी खुशबूँ
अश्कों की बरसात
सुनेहरी सीपियों
में कैद
कही-अनकही
हर बात
पूरा एक समुद्र है
अब तुम्हारे हाथ
सौदें तन्हाई के
आखिर कर ही
लेते है जज्बात .....
सोचती हूँ कभी कभी
जिस पेड़ की
छांव मे पाकर
विश्वास की खाद
अंकुरित हो गयी थी
स्नेह की वृक्ष लता
बिना सोचे बिना समझे
कि नही होता है
हर पेड़ बरगद सा
धुन मे अपनी
चली जा रही थी
सजती संवरती
कोमल कलियों
से निखरती
सहसा हुआ
एक व्रजपात
मुस्कुराता पेड़
नजर आया
अचानक हताश
उसके स्नेह की
कोमल लताओ पर
वो प्रेम पुष्प
तलाश रहा था
मानो जड़ो को
उसकी कोई खोद़
कर उखाड़ रहा था
अब बस पेड़ खड़ा है
विश्वास बिखरा पड़ा है
और पड़ी है कुछ
मृत लताये
अनगिनत सवाल
खुली आँखो मे
नजर आये
पुछ रही है
सबसे कबसे
कोई तो ये बताये
इस जगंल मे
कोई रिश्ता कैसे निभाये .....
जिस पेड़ की
छांव मे पाकर
विश्वास की खाद
अंकुरित हो गयी थी
स्नेह की वृक्ष लता
बिना सोचे बिना समझे
कि नही होता है
हर पेड़ बरगद सा
धुन मे अपनी
चली जा रही थी
सजती संवरती
कोमल कलियों
से निखरती
सहसा हुआ
एक व्रजपात
मुस्कुराता पेड़
नजर आया
अचानक हताश
उसके स्नेह की
कोमल लताओ पर
वो प्रेम पुष्प
तलाश रहा था
मानो जड़ो को
उसकी कोई खोद़
कर उखाड़ रहा था
अब बस पेड़ खड़ा है
विश्वास बिखरा पड़ा है
और पड़ी है कुछ
मृत लताये
अनगिनत सवाल
खुली आँखो मे
नजर आये
पुछ रही है
सबसे कबसे
कोई तो ये बताये
इस जगंल मे
कोई रिश्ता कैसे निभाये .....
.......................शब्द सरिता-सविता
Saturday, January 30, 2016
तस्वुर ऐ तस्वीर और
बहते रंगो का जलजला
हर्फ हर्फ था रो पङा
जब ख्याल कोई जला.......
*************************
न एहतराम वादो का रहा
न एतबार यादो का रहा
शिकायत न रही किसी से
न ही खुद से रहा मुझे गिला.......
*************************
हर्फ हर्फ रो था पङा
जब ख्याल कोई जला.....
*************************
उठ था जब यकीं का धुआं
तस्सवुर इबादत करता रहा
फिर रूबरू हम तुझ से हुए
ख़ाक में वो तस्सवुर मिला .......
****************************
हर्फ हर्फ रो था पङा
जब ख्याल कोई जला...
**************************
.......................शब्द सरिता-सविता
बहते रंगो का जलजला
हर्फ हर्फ था रो पङा
जब ख्याल कोई जला.......
*************************
न एहतराम वादो का रहा
न एतबार यादो का रहा
शिकायत न रही किसी से
न ही खुद से रहा मुझे गिला.......
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हर्फ हर्फ रो था पङा
जब ख्याल कोई जला.....
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उठ था जब यकीं का धुआं
तस्सवुर इबादत करता रहा
फिर रूबरू हम तुझ से हुए
ख़ाक में वो तस्सवुर मिला .......
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हर्फ हर्फ रो था पङा
जब ख्याल कोई जला...
**************************
.......................शब्द सरिता-सविता
ऐसा नही की मुझकों तुझसे जरा भी प्यार नहीं
पर जिंदगी सिर्फ कोई जीत और हार नहीं
***************************************
हर चीज को हमने बिकते हुए बाजार में देखा
पर रिश्तें होते हैं अनमोल कोई व्यापार नहीं
***********************************
माना कि खुदगर्जी के हाथों में तेज़ तलवार हैं
पर काटे प्रेम को इसमें अभी वों आयी धार नहीं
**********************************
मिली है हमे कुछ साँसे कर गुज़रने के लियें
पर गुजार दूँ शिकवों में इतने भी बेजार नहीं
**********************************
एक रोज मौत हौले से दस्तक दे देगी हमको
पर कह कहाँ पाएंगे उसको हम अभी तैयार नहीं
......................................शब्द सरिता -सविता
पर जिंदगी सिर्फ कोई जीत और हार नहीं
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हर चीज को हमने बिकते हुए बाजार में देखा
पर रिश्तें होते हैं अनमोल कोई व्यापार नहीं
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माना कि खुदगर्जी के हाथों में तेज़ तलवार हैं
पर काटे प्रेम को इसमें अभी वों आयी धार नहीं
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मिली है हमे कुछ साँसे कर गुज़रने के लियें
पर गुजार दूँ शिकवों में इतने भी बेजार नहीं
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एक रोज मौत हौले से दस्तक दे देगी हमको
पर कह कहाँ पाएंगे उसको हम अभी तैयार नहीं
......................................शब्द सरिता -सविता
घर के आँगन में
बूढ़े दरख्त की
मजबूत शाखाओ पर
बचपन का झुला
सबको याद आया
एक छोटे से
शीर्षक ने बचपन
के हर खेल को
बारी बारी याद कराया
सुख में दुःख में
जो था इस आँगन ने
बखूबी साथ निभाया
छन से एक पुरवाई
मुझको भी कही
दूर खीच लायी
कोमल अहसासों
की बगियाँ महकायी
पर मन ने जबसे
तस्वीरो से बात की हैं
आज आचानक आँगन ने
मुझसे एक नयी
मुलाकात की हैं
एक सूनापन उसकी
आँखों में नजर आया हैं
अपनों के बीच जैसे
वो तो कोई पराया हैं
तभी तो घर की
दहलीज के बाहर
तक ही रहा हैं
उसके वजूद का साया हैं ...........
...........................शब्द सरिता -सविता
बूढ़े दरख्त की
मजबूत शाखाओ पर
बचपन का झुला
सबको याद आया
एक छोटे से
शीर्षक ने बचपन
के हर खेल को
बारी बारी याद कराया
सुख में दुःख में
जो था इस आँगन ने
बखूबी साथ निभाया
छन से एक पुरवाई
मुझको भी कही
दूर खीच लायी
कोमल अहसासों
की बगियाँ महकायी
पर मन ने जबसे
तस्वीरो से बात की हैं
आज आचानक आँगन ने
मुझसे एक नयी
मुलाकात की हैं
एक सूनापन उसकी
आँखों में नजर आया हैं
अपनों के बीच जैसे
वो तो कोई पराया हैं
तभी तो घर की
दहलीज के बाहर
तक ही रहा हैं
उसके वजूद का साया हैं ...........
...........................शब्द सरिता -सविता
Friday, January 29, 2016
सहजता हर रूप में स्वीकार्य हैं ......मेरी रचना का आधार ..
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पर्ते सच की
जब खुलने
लगती हैं
सुन्दर सी
तस्वीरे भी
तब धुलने
लगती हैं
आवरण तो
हर चीज पर
नजर आता हैं
आत्मा पर
शरीर का
स्वार्थो पर
विश्वास का
निराशा पर
आशा का
कुरचोगे जो
तो छिल जाओगे .....
सहज ही खोलने दो
सत्य को पिघलने दो ..........
............... शब्द सरिता - सविता
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पर्ते सच की
जब खुलने
लगती हैं
सुन्दर सी
तस्वीरे भी
तब धुलने
लगती हैं
आवरण तो
हर चीज पर
नजर आता हैं
आत्मा पर
शरीर का
स्वार्थो पर
विश्वास का
निराशा पर
आशा का
कुरचोगे जो
तो छिल जाओगे .....
सहज ही खोलने दो
सत्य को पिघलने दो ..........
............... शब्द सरिता - सविता
आ भोर को चिड़िया आँगन में चहकती तो होगी
हवायें आँगन में तुम्हारे कुछ देर ठहरती तो होगी
हवायें आँगन में तुम्हारे कुछ देर ठहरती तो होगी
मैं छोड़ आयी थी जिस शाख पर डला एक झुला
शाख कभी-कभी वो याद में मेरी लहरती तो होगी
शाख कभी-कभी वो याद में मेरी लहरती तो होगी
सिवाय यादों के मै लायी नही साथ में कुछ भी
बात शायद तुझको ये अब भी अखरती तो होगी
बात शायद तुझको ये अब भी अखरती तो होगी
हाँ! नही है ये मुमकिन कि सबको सब मिल जाये
लकीरें हाथों की इन ख्वाहिशों से सिहरती तो होगी
लकीरें हाथों की इन ख्वाहिशों से सिहरती तो होगी
रह गयी थी जो मुलाकातें अधूरी हमारी तुम्हारी
ऐ! वक्त ख्वाब में जिन्दगी तुझमे सवंरती तो होगी
............................ शब्द सरिता - सविता
ऐ! वक्त ख्वाब में जिन्दगी तुझमे सवंरती तो होगी
............................ शब्द सरिता - सविता
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